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RASHMI RAJ
AUTHOR OF THE BOOK “एक टुकड़ा धूप”
About The Book
“एक टुकड़ा धूप "
“एक टुकड़ा धूप” मेरे भावों, मेरे विचारों और मेरी संवेदनाओं की एक कड़ी है, जो कठिनाईयों में स्वयं मुझे भी कई बार ऐसे संभाल लेती है जैसे कोई मां अपने बच्चे को संभाल लेती है। “एक टुकड़ा धूप” मेरा प्रथम काव्य संग्रह है और विधिवत लेखन में मेरा प्रथम प्रयास भी है। इसकी लेखिका होने के कारण मैं अपने पाठको से केवल इतना कहना चाहूंगी कि जीवन के पथ पर चाहे कितना भी अँधेरा हो उसे मिटाने के लिए एक टुकड़ा धूप भी पर्याप्त होती है। “माना रात बहुत है काली, पर कब तक है रहने वाली “एक टुकड़ा धप” जीवन से हार मान चुके, अपने आप से जूझते, नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले हर इंसान को आशा का नया सन्देश देगी, इस विश्वास के साथ एक टुकड़ा धूप आपके हाथों में सौंप रहीं हूँ। आशा है मेरा प्रयास आपके स्नेह की कसौटी पर खरा उतरेगा। एक टुकड़ा धूप में आपको कहीं हास्य की फुलझड़ियां मिलेंगी तो कही व्यंग्य के तीखे वाण, कहीं पीड़ा की चुभन होगी तो कहीं करुणा की शीतल बयार आपको सहला जायेगी, कही प्रेम का सागर उमड़ेगा तो कही सामाजिक संवेदनाओं के मोती किनारे पर यहाँ वहां बिखरे मिल जायेंगे, कहीं सामाजिक कुसंगतियाँ मुखर हो बोल उठेंगी, तो कहीं आशा के दीप जगमगा कर कह उठेंगे। मैं थोड़ा पीछे छूटा था, अब आगे आने वाला हूँ, जो घटित बुरा था भुला दिया, कुछ अच्छा पाने वाला हूँ। मेरी कवितायें हमेशा से ही समय की देन रहीं हैं। जैसा अनुभव किया बस वैसा ही लिख दिया। कभी कविता लिखने के लिए कविता लिखने नहीं बैठी। मेरी कविताएं छायावादी कवियों की कविताओं से प्रेरित रहीं हैं क्योकि मैं कॉलेज के दिनों में उन्हें ही सबसे आटा पटती थी। ये मां सरस्वती का आशीर्वाद ही है जो भी लिखा है उनकी कृपादृष्टि से ही लिखा है। आपकी बहुमूल्य प्रतिकिया की मैं आतुरता से प्रतीक्षा करंगी। ये प्रतिकियाएं ही मेरे लेखन में सुधार ला सकती हैं और मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा दे सकती हैं।
Rashmi Raj
[ ABOUT RASHMI RAJ ]
About
(एक टुकड़ा दूप) की लेखिका होने की नाते आज में यानि की रश्मी राज आपको अपने बारे में कुछ बताना चाहती हू।
बचपन से ही मेरा रुझान नृत्य, कला, संगीत और सहित कला की तरह था। मात्र 22 वर्ष की आयु में मेने अपना पहला स्टेज प्रोग्राम दिया था। 22 वर्ष से आरम्भ हुयी यह यात्रा 21 वर्ष तक निर्बिधि चलती रही। विध्याला में या कालेज में कोई भी कार्यक्रम होता तो में सब में अपना नाम लिखा देती कभी कभी तो कम अंतराल के कारण मुझे किसी कार्यक्रम से हटा दिया जाता तो मेरा मन बहुत खराब होत। मंच मेरी पसंदीदा जगह थी देर रत तक नाटकों की रेहलसर करना मुझे बहुत अच्छा लगता थ।
21 वर्ष की कम आयु में ही मेने MA BA कर लिया था। यह सन 1982 की बात है और मेने महाराजा अग्गरसेन विध्याला, 9 /12 तक की छात्राओं को संगीत सीखना शुरू कर दिया था जब में सिर्फ 11 वि कक्षा में थी मुझे 400 बच्चों को डांस सीखने के लिए चुना गया बतौर शिक्षक मेने 2 साल नित्य भी सिखाया नई इरा पब्लिक स्कूल मायापुरी दिल्ली में कहने का अर्थ यह की में कला के प्रति पूरी तरह से समर्पित हूँ।